उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड आजादी के बाद से ही पेयजल और सिंचाई की समस्या से जूझ रहा है। इतिहास देखें तो यही लगता है कि, सभी सत्तासीन पार्टियां बुंदेलखंड को इस दंश से उबारने के लिए प्रयास करती रही हैं। साल 2017 में जब प्रदेश में भाजपा सरकार बनी तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पेयजल की समस्या को दूर करने की बात कहते नजर आए। शायद यही वजह है कि, जल जीवन मिशन उत्तर प्रदेश (हर घर नल) के तहत प्रथम चरण में ही बुंदेलखंड के सातों जिलों को 2,185 करोड़ की 12 पेयजल परियोजनाओं की सौगात दी है।

लेकिन पिछली योजनाओं के जैसे ही इसका कहीं हश्र न हो जाए, इस बात को लेकर चिंता सताने लगी है।पेयजल और सिंचाई की समस्या को दूर करने के लिए 7 बड़ी योजनाओं और लगभग 50 छोटी योजनाओं की शुरूआत यहां हो चुकी है। लेकिन वह पूरी होने से पहले ही बंद हो चुकी हैं। कई योजनाएं तो ऐसी हैं जिनकी अब तक जांच नहीं हो पाई है। एक रिपोर्ट...

बीते कई सालों तक बुंदेलखंड में रहा भीषण सूखा

लंबे समय से पृथक राज्य बुंदेलखंड की मांग को लेकर संघर्ष करते आए बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु साहय बताते हैं कि बुंदेलखंड में साल दर साल पेयजल संकट बढ़ता जा रहा है। इसकी ताजा बानगी अप्रैल-मई 2019 में बांदा और झांसी में देखने को मिली थी। इन शहरों की ज्यादातर पेयजल योजनाएं धड़ाम हो जाने से शहर के लोग प्यास से बिलख उठे थे। यह हाल केवल पिछले साल का ही नहीं बल्कि बीते 5 सालों से बुंदेलखंड में पानी के लिए हाहाकार मचा रहा।

बन जाता एरच बांध तो मिलता 300 गांवों को लाभ

अखिलेश सरकार ने बुंदेलखंड के 300 गांव के लिए बहुउद्देश्यीय योजना एरच बांध परियोजना की 2015 में नीव रखी थी। 550 करोड़ की लागत से बनने वाला यह डैम जांच के चलते अभी तक अधूरा पड़ा है। काम समय से नहोने की वजह से अब इस प्रोजेक्ट की लागत 850 करोड़ पहुंच गई है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से बुंदेलखंड के 300 गांव की आबादी को बिजली, सिंचाई और पेयजल की समस्या से निजात मिल जाती।

यूपीए सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज में दिए थे 200 करोड़ रुपए

यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने भी बुन्देलखण्ड पैकेज के साथ 200 करोड़ रूपएपानी की समस्या से निपटने के लिए दिए थे। पूर्व प्रधानमंत्री ने यह घोषणा राजकीय इण्टर कालेज के मैदान में एक चुनावी सभा में की थी। इसके बाद सरकार बदलने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तमाम परियोजनाएं घोषित कर दी, लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा वाली योजनाओं का भी हश्र आम योजना की तरह हुआ। एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ, जिससे बुन्देलखण्ड पानी की समस्या से जूझ रहा है। यहां वर्षों से व्याप्त पेयजल योजना के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों को मिलकर ठोस रणनीति तैयार करनी होगी, ताकि इस समस्या से हमेशा के लिए निजात मिल सके।

महाराष्ट्रका प्रोजेक्ट बुंदेलखंड में होना था लागू

साल 2018 में योगी ने कृषि उत्पादन आयुक्त के नेतृत्व में एक टीम को बुंदेलखण्ड के महोबा और हमीरपुर जिलों में इस महाराष्ट्र के अभियान को पायलट परियोजना के रूप में लागू करने के लिए अध्ययन करने के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखण्ड के दो जिलों में महाराष्ट्र के ‘सुजलाम सुफलाम’ अभियान को पायलट परियोजना के तौर पर लागू करने की संभावनाओं पर गहन अध्ययन करने का निर्देश दियाथा।

एकल ग्राम समूह की पेयजल योजना तोड़ चुकी है दम

वहीं 2016 में हमीरपुर जिले में राठ पेयजल योजना स्वीकृत होकर काम शुरू हुआ। 10 करोड़ रूपये की धनराशि अवमुक्त हो गई। जल निगम ने यह धनराशि खर्च भी कर दी, लेकिन योजना अभी भी अधर में लटकी है। वहीं पाठा क्षेत्र में पेयजल समस्या का समाधान कराने के लिए लगभग दस साल पुरानी 251 करोड़ रुपएकी परियोजना शुरू हो रही है। वहीं पिछले डेढ़ दशक के अन्दर जल निगम ने बुन्देलखण्ड के सैकड़ों गांवों में एकल या ग्राम समूह की पेयजल योजनाएं चालू की थी। इनमें नौ योजनाएं पूरी तरह दम तोड़ चुकी है।

दर्जनों छोटी योजनाएं हो चुकी हैं धराशाई

ग्रामीण पाइप लाइन योजनाओं में दर्जन भर चित्रकूट की हैं। इनमें 15 करोड़ 60 लाख रूपये लागत आई थी। बांदा जनपद में 22 योजनाएं आंशिक आपूर्ति कर रही हैं, इनमें 12 करोड़ 70 लाख रूपये खर्च हुए थे। हमीरपुर में 4 करोड़ 93 लाख लागत वाली पांच पेयजल योजनाएं नाममात्र का पानी दे रही है। महोबा में ढाई करोड़ की लागत की छह योजनाएं पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं और हमीरपुर में भी 74 लाख की तीन ग्रामीण पेयजल योजनाएं बन्द हो चुकी हैं।

दो राज्यों के बीच सहमति न बनने से रुक गया केन बेतवा परियोजना का काम

  • मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच पानी के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाने के कारण केन-बेतवा लिंक परियोजना एक जगह ठहरी हुई है। उत्तर प्रदेश रबी की फसल के लिए जितने पानी की मांग रहा है, उतना मध्य प्रदेश सरकार देने को तैयार नहीं है। जबकि, मुख्यमंत्री इस मामले को लेकर कई बार जलशक्ति मंत्रालय को पत्र लिख चुके हैं।
  • केन बेतवा लिंक परियोजना शुरू होजाने के बाद मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की डेढ़ लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन सिंचित हो जाएगी। मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ और पन्ना जिले में अब तक सिंचित क्षेत्र का कुल रकबा 2 लाख 87 हजार 842 हेक्टेयर है, जो नहर बन जाने के बाद 3 लाख 69 हजार 881 हेक्टेयर हो जाएगा।
  • इसी तरह उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा व झांसी जिले में अब तक सिंचित रकबा 2 लाख 27 हजार 373 हेक्टेयर है। यह बढ़कर दो लाख 65 हजार 780 हो जाएगा। आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका लाभ यूपी को एमपी की अपेक्षा काफी कम मिलेगा।

बांदा के 75 फीसदी हैंडपंप पानी देना कर गए बंद

पानी की सबसे ज्यादा समस्या बुन्देलखण्ड जनपद बांदा के शहरी क्षेत्र में है। केन नदी के तट पर स्थित दो इंटेक बेलो तथा 22 नलकूपों व 40 कुओं, 940 हैण्डपम्पों के जरिए जलापूर्ति की जाती है। इनमें गर्मी में 75 फीसदी हैण्डपम्पों ने पानी देना बन्द कर दिया है। केन नदी में पानी कम हो जाने और सब्जी लगाने वाले किसानों द्वारा पानी की धार को अपने खेतों की तरफ मोड़ लिया जाता है। वहीं बालू माफियाओं द्वारा जगह-जगह जल धारा रोक लेने से इंटेक बेलो तक पानी नहीं पहुंच रहा है, जिससे शहर में पेयजल समस्या ने उग्र रूप धारण करना शुरू किया। जिसका समाधान इस माह के अन्त तक नहीं हो पाया। वर्तमान जनसंख्या के मुताबिक 26300 एमएलडी पानी की प्रतिदिन आपूर्ति होनी चाहिए, लेकिन नदी में पानी की उपलब्धता न होने से पर्याप्त जलापूर्ति नहीं हो पाने से समस्या बढ़ रही है।



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यह तस्वीर बुंदेलखंड में 550 करोड़ की लागत से बनने वाला बेतवा नदी पर बहुउद्देशीय योजना के तहत एरच डैम की है। जिसका काम 2017 में जांच के नाम पर रोक दिया गया था। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से बुंदेलखंड के 300 गांव की आबादी को बिजली, सिंचाई और पेयजल की समस्या से निजात मिल ने की उम्मीद थी।


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